किसानों के हित में बजट के वादे दावे तो पहले से ही किए जा रहे हैं जबकि किसानों ने 2022 तक इंतज़ार किया लेकिन तत्काल किसानों के हित में लिए गए पहले के फैसले लागू कर देने चाहिए। पहले सीमांत तथा लघु सीमांत किसानों की श्रेणी का पता नहीं चलता, जबकि अब यह पैमाना देखना होगा कि कितनी लागत फसल में लगी है। भाई पहले तो कृषि को उद्योग का दर्जा मिलने सहित किसान आयोग का गठन होना चाहिए। स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशो को तत्काल लागू किया जाये। शायद किसानों का भला हो।
बिजली की बिल ड्योढ़े कर दिए गए हैं, यूरिया पर सब्सिडी और किसानों को मिलने वाला बीज, कीटनाशक सब पर महंगाई के साथ-साथ डीजल भी महंगा है। बजट किसानों के हित में तब होता जब ट्यूबवेल का बिल कम कर दिया जाता। यूरिया केवल किसान को मिलता है, उसको सस्ता कर दिया जाता।
राष्ट्रपति की तन्खवाह तत्काल लागू कर जाती हैं, जबकि किसानों को दी जा रही सौगात के लिए 2022 तक का समय दिया गया था जिसे भी इस बजट में यानी आजतक लागू नहीं किया गया। 2018 के बजट में गांवों का विकास 2022 तक होगा कहाँ गया। आठ साल हो रहे हैं, लेकिन आजतक किसानों, गाँवों को दिए गए घोषणा में कुछ नहीं मिला।
केवल घोषणा होकर रह जाती है, इस तरह किसान और गाँव का कोई भला नहीं हो सकता। लाखो की फसल बेमौसम बारिश ओलावृष्टि बाढ़ से बर्बाद हो जाती है और किसान हजार रुपये के लिए भागते फिरते हैं। बाद में पता चला कि बीमा नहीं मिलेगा। कहा कि फसल की लागत मूल्य पर डेढ़ गुना बढ़ाने का दावा पहले भी कर दिए गए हैं, यह जानते नहीं कि फसल की लागत कितनी है।
कह रहे ऑफिसों में बैठकर किसान का भला कर दिया। कहां से पता लगाएंगे कि फसल की लागत इतनी है और उसका डेढ़ गुना मूल्य दे रहे हैं। सब वादे दावे खोखले साबित हो गया हैं।
किसानों के लिए सरकार ने बजट में कुछ नहीं दिया। केवल पहले के जैसे सपने दिखा दिए हैं। पहले ऊंट के मुँह में जीरे की कहावत थी लेकिन सरकार ने इस बार चुनावी लोलीपोप में ऊंट के मुंह में जीरे के स्थान पर मटरे का दाना दे दिया है।
किसान कर्ज और फसल न होने में मर रहा है और जवान सीमा पर मर रहा है। बजट समाचारों टीवी चैनलों में ही बढिया है जबकि किसानों को तो पहले की तरह फिर से एक भरोसा दे दिया गया है।
बिजली का ट्यूबवैल पर बिल कम करा दें और आलू तथा अन्य सब्जी के दाम सहीं दिला दें बस यह बजट हो तो किसानों को भला है नहीं तो यह तो कागजी बाते हैं।
किसान तो चुनाव से पहले बस यही सुनता है कि पांच साल में यह हो जाएगा। होता कुछ नहीं है, अगर किसानों को देना है तो तत्काल लागू करों फिर भरोसा क्यों दिया जा रहा है।