लोक आस्था की प्रतीक जिनके आगे अंग्रेज अधिकारी ने नवाया शीश

27

गाजीपुर।वासंतिक नवरात्र में जहां शक्तिपीठों पर श्रद्धालुओं का भारी सैलाब उमड़ रहा है। वहीं जनपद के गंगा पार सेवराई तहसील क्षेत्र के दिलदारनगर जंक्शन के आप रेलवे ट्रैक के बीचो बीच स्थित लोक आस्था की प्रतीक माता शायर की दरबार में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। लोक आस्था की प्रतीक इस देवी के उपस्थिति की घटना भी कुछ अजीबोगरीब है। ब्रिटिश काल में जब ईस्ट इंडिया रेलवे की स्थापना हुई तो उस समय सन 1945 के आसपास रेलवे के दोहरे ट्रैक के निर्माण का भी कार्य प्रारंभ हुआ। जिसको लेकर दिलदारनगर रेलवे स्टेशन के अप लूप लाइन को बिछाने के लिए अंग्रेज इंजीनियर जिसे उस समय प्लेटीयर साहब के नाम से जाना जाता था उसने रेलवे ट्रैक बिछाने के क्रम में घने झाड़ जंगलों को साफ करने का हुक्म आपने मातहतों को दिया। जन श्रुतियों की माने तो जब मजदूर जंगल साफ कर रहे थे तो उसी दौरान रेलवे ट्रैक बिछाने के चिन्हित स्थान के सामने एक विशालकाय नीम का पेड़ सामने आ गया उसके नीचे एक छोटी सी पिंडी उभरी हुई थी। भारी गर्मी के कारण मजदूर भोजन कर जब विश्राम कर रहे थे तो उसी समय मां सायर स्वप्न में दर्शन देकर नीम के पेड़ को नहीं काटने का निर्देश मजदूरों को दिया स्वप्न में देवी के दर्शन से घबराए मजदूर जब प्लेटियर साहब को स्वप्न का वृतांत सुनाया तो प्लेटियर साहब इसे मजाक समझ बैठे और नीम के पेड़ को काटने के साथ साथ उस पिंडी को भी हटाने का फरमान जारी कर दिया। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से डरे सहमे मजदूर नीम के पेड़ को काटने से मना कर दिए तो अंग्रेज इंजीनियर प्लेटियर साहब ने अपने विश्वस्त मजदूरों को लगाकर जब नीम के पेड़ को कटवाना शुरू किया तो तना पर पहली कुल्हाड़ी लगते जब लाल रक्त नुमा द्रव तने से बहने लगा तो मजदूर सहम गए और इसकी जानकारी जब अंग्रेज अधिकारी को दिया तो वह नहीं माना और पेड़ को धराशायी करा ही दिया। तो माता का कोप सातवें आसमान पर जा पहुंचा आलम यह रहा कि नीम का पेड़ काटने वाले तीनों मजदूरों की मौत तो हुई ही वही उसी रात अंग्रेज इंजीनियर का 5 वर्षीय पुत्र भी काल कवलित हो गया। जिसकी कब्र आज भी पीडब्ल्यू आई बंगला परिसर में मौजूद है इतने पर भी माता का कोप शांत नहीं हुआ इस अप्रत्याशित घटना से अंग्रेजी इंजीनियर भी गंभीर रूप से बीमार हो गया और बिस्तर पकड़ लिया। इससे घबराए इंजीनियर की पत्नी आसपास के लोगों से जब जानकारी एकत्र की तो लोगों के बताए अनुसार जिस स्थान पर माता की पिंडी थी उसी स्थान पर चौरी बनवा कर उनकी पूजा अर्चना कर अपने पति से माफी मंगवाई तब जाकर माता का कोप शांत हुआ और अंग्रेज इंजीनियर प्लेटियर साहब की जान बच गई।ऐसा भी बताया जाता है कि जब नीम के पेड़ को काटने के बाद रेलवे ट्रैक सीधा बिछाया जाता था तो सुबह होते ही बिछाए गए स्थान से रेलवे ट्रैक हटा हुआ पाया जाता थाम दिलदारनगर जंक्शन के अप रेलवे ट्रैक के मध्य स्थित सायर माता के छोटे से दरबार की देखरेख बगल स्थित ग्राम सभा निरहू का पूरा के जमुना यादव की दूसरी पीढ़ी के लोग कर रहे हैं। वही मंदिर के पुजारी कृष्ण कांत पांडेय ने पूछे जाने पर बताया कि माता शायर की महिमा यही नहीं बल्कि बिहार बंगाल और जगह झारखंड में भी मशहूर है आने को तो मन्नत मांगे श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ावा चढ़ाने का सिलसिला वर्ष भर लगा रहता है किंतु शरदीयऔर वासंतिक नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ता है। माता द्वारा भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करने का प्रमाण है हजारों की संख्या में माता के छोटे से दरबार में टंगे घंटे और फर्श पर टांके गए चांदी के सिक्के भी है।